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लेखनी प्रतियोगिता -18-Apr-2022 जजबात

तुझे क्या पता है न जाने कितनी रातों से सोया नहीं हूं 

ऐसा कौन सा पल है जिसमें मैं तुझमें ही खोया नहीं हूं 

तेरा मुस्कुराता हुआ चेहरा रहता है निगाहों में हरदम 
आहें भरता हूं मगर सबके सामने कभी रोया नहीं हूं 

मुझे पता है तेरे दिल में भी उठते हैं तूफानों के भंवर
पर इश्क की बारिश में मैं तेरी तरह भिगोया नहीं हूं 

इक तेरा आसरा ना मिला तो टूटकर बिखर जाऊंगा 
तेरी तरह मैं भी किसी मजबूत सांचे में पिरोया नहीं हूं 

अब और ना सह पाऊंगा तेरी बेरुखी, सुन ओ हसीना
आंसुओं से लबरेज हूं खुशी के सागर में डुबोया नहीं हूं 

हरिशंकर गोयल "हरि"
18.4.22 


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23 Comments

Swati chourasia

20-Apr-2022 03:46 PM

बहुत ही सुंदर रचना 👌

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Shnaya

19-Apr-2022 04:36 PM

Very nice 👍🏼

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Hari Shanker Goyal "Hari"

20-Apr-2022 08:14 AM

💐💐🙏🙏

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Abhinav ji

19-Apr-2022 08:59 AM

Nice👍

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Hari Shanker Goyal "Hari"

19-Apr-2022 10:42 AM

💐💐😀😀

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